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लेखनी कहानी -04-Oct-2022 जालोर की रानी जैतल दे का जौहर

भाग 7 


परिस्थितियों को अपने अनुकूल करने के लिए ही अलाउद्दीन खिलजी को जाना जाता है । उसकी खासियत थी की राजी राजी या गैर राजी , जैसे भी हो , उसके पक्ष में परिणाम आना चाहिए । वह इसी नीति पर,काम करता रहा ।
जलालुद्दीन फिरोजशाह खिलजी का बड़ा भाई शहाबुद्दीन मसूद खिलजी था जिसकी मृत्यु हो गई थी । उसके चार पुत्र हुए । सबसे बड़ा पुत्र अली गुश्शर्प था जो बाद में अलाउद्दीन खिलजी के नाम से प्रसिद्ध हुआ । दूसरा पुत्र अल्मास बेग, तीसरा पुत्र कुतलुग खान और चौथा पुत्र अल्प खान था । अलाउद्दीन खिलजी के तीनों भाइयों ने अलाउद्दीन का साथ दिया जिससे उसकी ताकत बहुत बढ गई थी । 
जब जलालुद्दीन खिलजी ने दिल्ली पर कब्जा किया था तब अलाउद्दीन और उसके भाइयों ने जलालुद्दीन खिलजी का भरपूर साथ दिया था । उसी का परिणाम था कि सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी ने अपने भतीजे अलाउद्दीन खिलजी उर्फ अली गुश्शर्प को राजकीय समारोह आयोजित करने का प्रमुख यानि "अमीर ए तुजुक" नियुक्त किया । तुर्की सेना की सबसे मजबूत कड़ी "घुड़सवार सेना" थी । इसके महत्व को ध्यान में रखते हुए अलाउद्दीन खिलजी के छोटे भाई अल्मास बेग को जलालुद्दीन खिलजी ने घुड़साल का प्रमुख यानि "अखुर बेग" नियुक्त कर दिया । अन्य भाइयों को भी प्रमुख पद दे दिये गये । 

थोड़े से समय में ही अलाउद्दीन खिलजी और अल्मास बेग ने सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी की निगाहों में बहुत अच्छा स्थान बना लिया था । इससे प्रभावित होकर सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी ने अपनी एक बेटी की शादी अलाउद्दीन खिलजी से और दूसरी बेटी की शादी अल्मास बेग के साथ कर दी थी । जलालुद्दीन खिलजी अब अलाउद्दीन खिलजी का न केवल चाचा रहा अपितु उसका ससुर भी बन गया था । 
अलाउद्दीन खिलजी ने अपने भाइयों की मदद से  सन 1292 में दिल्ली सल्तनत पर हुए मंगोलों के आक्रमण को भी विफल कर दिया था । उसने अपने गुप्तचरों के माध्यम से मंगोल सेना के प्रमुख सरदारों को रिश्वत देकर और सल्तनत में ऊंचे ओहदों का लालच देकर अपने साथ कर लिया था । इससे मंगोल सेना के 4000 सैनिक मुसलमान बन गये जिन्हें दिल्ली के पास ही बसा दिया गया था । वह जगह आज भी "मंगोलपुरी" कहलाती है । ये "कन्वर्टेड" मुसलमान "नये मुसलमान" कहलाये । इस धर्मान्तरण ने अलाउद्दीन खिलजी को बड़े स्तर पर धर्मान्तरण अभियान चलाने के लिए प्रेरित किया । 

मंगोल विजय में अलाउद्दीन खिलजी के योगदान को ध्यान में रखकर सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी ने अपने भतीजे और दामाद अलाउद्दीन खिलजी को "कड़ा" प्रांत का राज्यपाल नियुक्त कर दिया । कड़ा प्रांत में इलाहाबाद, कौशाम्बी और उसके आसपास का क्षेत्र आता था । कड़ा का राज्यपाल बनने के पश्चात अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी शक्ति बढाना प्रारंभ कर दिया । वह अति महत्वाकांक्षी व्यक्ति था । उसका लक्ष्य दिल्ली का सुल्तान बनना था । पर इसकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा उसका चाचा और ससुर जलालुद्दीन खिलजी ही था । उसे पता था कि जलालुद्दीन खिलजी बूढा है और जल्दी ही मरेगा भी । लेकिन समस्या यह नहीं थी , समस्या तो यह थी कि जलालुद्दीन खिलजी अपना उत्तराधिकारी अपने पुत्र को बनाने वाला था न कि अपने भतीजे अलाउद्दीन को । बस, यही एक कारण था कि अलाउद्दीन खिलजी को जलालुद्दीन खिलजी, अपने चाचा और ससुर को मारने का षडयंत्र रचना पड़ा । 

अलाउद्दीन खिलजी बहुत तेज तर्रार, निर्दयी, तानाशाह और धर्मांध व्यक्ति था । उसे अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए हत्या, बलात्कार कुछ भी करने से कोई गुरेज नहीं था । वह एक नृशंस, बर्बर, क्रूर व्यक्ति था जो उदाहरण स्थापित करने के लिये इस तरह से बर्बरता करता था कि खुद यमराज भी दहल जाये । जलालुद्दीन खिलजी उतना नृशंस नहीं था इसलिए उसने बलबन के पुत्र और भतीजों का वध नहीं किया था अपितु उन्हें अपने राज्य में उच्च पद दे दिये थे । 

बलबन के एक पुत्र मलिक छज्जू ने "कड़ा" का गवर्नर रहते हुए सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी के विरुद्ध एक षडयंत्र रचा और विद्रोह कर दिया । इस विद्रोह को दबाने के लिए जलालुद्दीन खिलजी ने अलाउद्दीन और अल्मास बेग को भेजा । अलाउद्दीन खिलजी ने साम, दाम, दंड, भेद से वह विद्रोह दबा दिया । मलिक छज्जू का सिर काटकर दरवाजे पर टांग दिया गया और उसके बदन से खाल उधेड़कर उसमें भुस भरवा कर पूरे "कड़ा" प्रांत में घुमाई गई जिससे लोगों में इतना भय व्याप्त हो जाये कि फिर कोई दिल्ली सल्तनत के खिलाफ विद्रोह करने का साहस नहीं कर पाये । अलाउद्दीन खिलजी ने बलबन के समस्त उत्तराधिकारियों को चुन चुन कर मरवा दिया जिससे न रहे बांस और न बजे बांसुरी की तरह भविष्य में कोई विद्रोह होने की संभावना ही नहीं रहे । 

अलाउद्दीन खिलजी की इस सफलता के पश्चात जलालुद्दीन खिलजी ने उसे "कड़ा" का राज्यपाल नियुक्त किया था । अब अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का सुल्तान बनने का ख्वाब देखने लगा था । उसे पता था कि दिल्ली पर कब्जा करने के लिए धन दौलत और सेना की बहुत ज्यादा आवश्यकता होगी । उसने अपने छोटे भाई अल्मास बेग को दिल्ली दरबार में महत्वपूर्ण पद पर बैठा दिया जो दिल्ली की हर छोटी बड़ी सूचना उस तक पहुंचाता था । धन दौलत एकत्रित करने के लिए अलाउद्दीन खिलजी ने "हिन्दू रियासतों" को लूटने की योजना तैयार की और सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी को "मोटा माल" देने का प्रलोभन देकर पड़ौसी राज्य "भिलसा" पर आक्रमण कर लूटने की मंजूरी ले ली थी  । 

अलाउद्दीन अपनी विशाल सेना लेकर भिलसा जा पहुंचा और आक्रमण कर दिया । भिलसा को जीतने में उसे कोई ज्यादा समस्या नहीं आई । भिलसा में उसने जबरदस्त लूटपाट की । खूब सारा माल और स्त्रियां लूटी गईं । अलाउद्दीन ने एक योजना के अन्तर्गत लूटा गया समस्त माल दिल्ली भिजवा दिया । इतना माल और "शबाब" देखकर जलालुद्दीन खिलजी प्रसन्न हो गया और उसने अलाउद्दीन खिलजी की भूरि भूरि प्रशंसा की । इससे अलाउद्दीन का कद और बढ गया तथा वह अब जलालुद्दीन खिलजी का सबसे अधिक विश्वास पात्र भी बन गया था । 

अलाउद्दीन खिलजी का असली खेल अब शुरू हुआ । उस समय "देवगिरी" राज्य दक्षिण भारत का द्वार कहलाता था । देवगिरी तक तुर्क पहुंचे नहीं थे इसलिए देवगिरी अर्थात आज का दौलताबाद जो महाराष्ट्र में है उस समय "सुवर्ण नगरी" के नाम से जानी जाती थी । सोने का अथाह भण्डार था वहां पर । उस समय देवगिरी पर यादव वंश का राजा रामदेव शासन कर रहा था । अलाउद्दीन ने सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी को देवगिरी लूटने का विचार बताया तो जलालुद्दीन खिलजी ने तुरंत स्वीकृति दे दी क्योंकि उसे विश्वास था कि अलाउद्दीन भिलसा की तरह लूट का समस्त माल उसे दे देगा । लेकिन अलाउद्दीन की योजना कुछ और ही थी । 

देवगिरी पर आक्रमण कर दिया गया । यादव राजा रामदेव बड़ा कायर निकला । उसने युद्ध करने के बजाय आत्म समर्पण कर दिया और अपनी बेटी को लेकर अलाउद्दीन की सेवा में पहुंच गया । अलाउद्दीन को और क्या चाहिए था ? रामदेव की बेटी के साथ उसने निकाह कर लिया और फिर उसने देवगिरी को जमकर लूटा । हिन्दुओं का जबरन धर्मान्तरण कराया गया । अलाउद्दीन सारा माल और हिन्दू स्त्रियां लेकर "कड़ा" चला गया और एक पत्र जलालुद्दीन खिलजी को भेज दिया कि वह अभी दिल्ली आ नहीं सका है लेकिन लूट का माल उसके पास सुल्तान की अमानत के तौर पर सुरक्षित है जिसे जल्दी ही लेकर वह सुल्तान की सेवा में हाजिर हो जायेगा । जलालुद्दीन ने उस पर विश्वास कर लिया । 

इस दौलत से अलाउद्दीन ने अपनी सेना का विस्तार कर लिया । उसने देवगिरी पर सन 1296 में आक्रमण किया था । उसने अपनी सेना और ताकत बहुत बढा ली थी । उधर जलालुद्दीन खिलजी को अब अलाउद्दीन के इरादे ठीक नहीं लग रहे थे मगर दिल्ली दरबार में मौजूद अलाउद्दीन खिलजी का छोटा भाई और जलालुद्दीन खिलजी का दूसरा दामाद अल्मास बेग जलालुद्दीन को विश्वास दिलाता रहा कि अलाउद्दीन सुल्तान से बहुत डरा हुआ है इसलिए वह दिल्ली आने से बच रहा है । लेकिन वह जल्दी ही दिल्ली आकर लूटा गया सारा माल सुल्तान की सेवा में हाजिर कर देगा । मगर अब सुल्तान का विश्वास डगमगाने लग गया था इसी कारण जलालुद्दीन खिलजी ने "कड़ा" जाने का निर्णय कर लिया था । 

श्री हरि 
14.10.22 

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4 Comments

Khan

23-Oct-2022 09:58 PM

Bahut khoob 🙏🌺

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Abeer

17-Oct-2022 11:17 AM

Very nice

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shweta soni

16-Oct-2022 10:54 PM

बहुत अच्छा लिखा है

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